“पिरंगुट की पगडंडी”
नई शुरुआत पुणे शहर की भागदौड़ से थका हुआ आरव जब अपनी नई नौकरी के लिए पिरंगुट पहुँचा, तो उसे लगा जैसे वह किसी और ही दुनिया में आ गया हो। छोटा-सा कस्बा, चारों तरफ़ हरियाली, पहाड़ियों के बीच से गुजरती संकरी सड़कें और खेतों से आती मिट्टी की खुशबू… सब कुछ उसे अजनबी भी लगा और सुकून भरा भी। आरव शहर का लड़का था, कॉर्पोरेट ऑफिस, कैफ़े और मॉल्स की दुनिया का आदी। लेकिन यहाँ बस छोटे-छोटे ढाबे थे, जहाँ चाय की भाप के साथ लोगों की हँसी भी उड़ती थी। पहले दिन ऑफिस से लौटते समय उसने गाँव की पगडंडी से शॉर्टकट लिया। रास्ते में बारिश की बूंदों से भीगी ज़मीन और हरी घास पर चलते हुए उसे एक अजीब-सी ठंडक महसूस हुई। तभी उसकी नज़र पड़ी— एक लड़की पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ा रही थी। उसकी आँखों में चमक थी, आवाज़ में अपनापन और चेहरे पर मासूम मुस्कान। लड़की ने बच्चों को अलविदा कहा और अपनी किताबें समेटने लगी। जाते-जाते उसकी नज़र आरव पर पड़ी। आरव थोड़ा झेंप गया, पर उसने हल्की-सी मुस्कान दी। लड़की भी मुस्कुरा दी और आगे बढ़ गई। उसकी वही मुस्कान आरव के मन में बस गई। उसे लगा जैसे इस अनजान जगह में पहली बार कोई अपना मिला हो। ...